परिचय
इस निबंध में, मैंने 'राष्ट्र' इस विचार को अपने मौलिक घटकों मे बाटा और 'राष्ट्र' को देखने के लिए एक नया दृष्टिकोण पेश किया है। हम इतिहास में वापस जाएंगे और राष्ट्रों के ऐतिहासिक उदाहरणों को जांचेंगे, जो उन्हें सफल बनाते हैं और उनका नाश कैसे हुवा।अंत में हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि बिटकॉइन और ईथरियम कैसे राष्ट्रों अगला पड़ाव का हैं। बहल ही बिटकॉइन और ईथरियम डिजिटल राष्ट्र हैं, उनके पास राष्ट्रों के समान भूमिकाएं और डिजाइन हैं।
डिजिटल राष्ट्र
बाहरी लोगों से, इस उद्योग को अक्सर 'क्रिप्टो' या 'ब्लॉकचेन' उद्योग कहा जाता है। यह नामकरण गलत है, और उन प्रणालिओं का सच्चा रूप इस परिभाषा से नहीं समझमें आता।
'क्रिप्टो-' क्रिप्टोग्राफी को संदर्भित करता है, जो सबूत और आश्वासन की गणितीय प्रणाली है। यह सिस्टम को अपडेट करने का भार उठती है, लेकिन यह खुद एक प्रणाली नहीं है।
‘मुद्रा’ - मतलब हर सिस्टम का मूल धन, पर ये भी खुड्ड एक प्रणाली नहीं है।
'ब्लॉकचेन'- एक डेटाबेस है, जिसके खाते का हर भाग सबके पास होता है। यह एक ‘सत्य का स्रोत’ है, जिसपर पूरी प्रणाली चलती है।पर ये भी खुद एक प्रणाली नहीं है।
इनमें कोई भी पूरी तरह से प्रणाली का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। इस प्रणाली को उनके एक भाग से पुकारना मतलब शारुख खान को केवल एक बन्दर बुलाने योग्य है। यह प्रणालियाँ विभिन्न घटकों को एक सात मिलकर एक और प्रणाली पर निर्भर है जो प्रोत्साहन, समझदार प्रतिनिधिओं और निवेश/उत्पादन पर चलती है।इस रचना का उभरता उत्पाद, उनके प्रत्येक व्यक्तिगत भाग के योग से कहीं अधिक है।इन प्रणालियों के उभरते उत्पाद के लिए एक सटीक नाम ढूंढना मुश्किल रहा है।वास्तव में, इन प्रणालियों के पूरे शरीर को वास्तव में शामिल करने वाला एकमात्र नाम, उनका स्वयं नाम है: बिटकॉइन और ईथरियम। ऐतिहासिक राष्ट्रों की तरह, वे सिर्फ एक उपकरण, या बुनियादी ढांचे हैं, जो व्यक्तियों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते है।
राष्ट्र की परिभाषा
विकिपीडिया के अनुसर, ‘राष्ट्र कहते हैं, एक जन समूह को, जिनकी एक पहचान होती है, जो कि उन्हें उस राष्ट्र से जोङती है। इस परिभाषा से तात्पर्य है कि वह जन समूह साधारणतः समान भाषा, धर्म, इतिहास, नैतिक आचार, या मूल उद्गम से होता है।’
एक राष्ट्र की यह परिभाषा भारत, चीन, आदि जैसे भौतिक राष्ट्रों तक ही सीमित है। हालांकि, राष्ट्र एक संगठनात्मक योजना है, जो मनुष्य अपने आसपास की दुनिया के साथ सहयोग करने और सफलता पूर्वक जीवन जीने के काम लाया जाता है। मनुष्य अपनी दैनिक गतिविधियों को स्थिर करने के लिए और उन्हें आकर देने के लिया, 'राष्ट्र' इस प्रणाली का उपप्योग करता है। समय के साथ कई राष्ट्र उभरे, समझ के लिए प्रगति लाई, फिर एक दिन वो भूदे हो गयी और मर गए, पर उनकी जगह हमेशा नए राष्ट्रोंने ली है।
राष्ट्र : एक जीवन
एक राष्ट्र कई अलग-अलग स्वतंत्र भागों की एक रचना प्रणाली है जिसमे सब अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए काम करता है। इन स्वतंत्र टुकड़ों को एक केंद्रीय प्रोटोकॉल द्वारा बुना जाता है जो सब को एक दूसरे के साथ काम करने में मदद करता है। जब हर भागा अपना काम सफलता पूर्व निभाता है तो पूरे प्रणाली को फ़ायदा होता है और सब का भला होता है।
राष्ट्र एक शरीर की तहरा होते है। उनके पास अपनी खुबिया और हतियार है, वे भी संदधानो का इस्तेमाल करती है और कचरा भी बनती है। राष्ट्र एक ऐसे दुनिया में जीते है जहाँ उन्हें सीमित संसाधनों के ऊपर आपस मे लड़ाई करनी पड़ती है, सभी राष्ट्रों को खुद की सुरक्षा करनी पड़ती है और इंसानियत से जयादा उन्हें पॉलिटिक्स में जायदा दिलचस्पी है।
मनुष्य अपनी दैनिक गतिविधियों को स्थिर करने के लिए और उन्हें आकर देने के लिया, 'राष्ट्र' इस प्रणाली का उपप्योग करता है। एक राष्ट्र तभी सफल होता है जब, वो स्थायी रूप से टैक्स जमा करे, जिसे लोग खुसी से भरेंगे अगर उनको इससे फ़ायदा हो रहा हो तब।एक राष्ट्र लोगों की रक्षा करता है, उन्हें एकत्रिति करता है, और लोग उसका भुगतान टैक्स देकर करते है।
राष्ट्र एक:
स्वतन्त्र टुकड़ों की एक जाली है,
उन टुकड़ो को आपस में सहयोग करने के लिए वो एक प्रोटोकॉल है
प्रोटोकॉल एक ऐसी चीज़ है जो किसी प्रणाली के टुकड़ों को एक साथ संगठित होने और सहयोग करने की भूमिका निभाता है।जीस प्रणाली का प्रोटोकॉल कुशलतासे आपने टुकड़ों का सहयोग करेगा, उस प्रणाली का खर्च/टैक्स सबसे कम होगा। इस वहज से अर्थव्यवस्था का विस्तार भी होगा।
एक राष्ट्र का प्रोटोकॉल उसके DNA (दीएनए) के सामान होता है। वह कोड जो तय करता है कि शरीर के बाकी हिस्सों को कैसे बनना चाहिए और विकसित होना चाहिए। एक राष्ट्र का शरीर विभिन्न प्रणालियों और शक्तियों की रचनाएँ हैं। जैसे शरीर में सेल (cell) होते है वैसे एक राष्ट्र के नागरिक है जो स्पेसलिस्ट होते है और खुद के सफल जीवन के लिया काम करते है। फिर जब बहुत सरे सेल एक सात काम करते है थो दिल, दिमाग़ जैसे जटिल अंग बनती है। एक राष्ट्र एक अंग उनके संसथान है जो राष्ट्र के शरीर के मुख्या काम करते है।अगर इनमे से एक भी संसथान (अंग) ने काम करना बंद दिया तो पूरा राष्ट्र (शरीर) बंद पड सकता है।
इस दृष्टिकोण से अगर हम राष्ट्र की परिभाषा को गौर से देखे , तो हम यह कह सकते है, की जैसे अलग अलग शरीर आपने वातावरण में एडाप्ट होने में सक्षम है, उसी तरह से अलग अलग राष्ट्र आपने वातावरण में एडाप्ट होने में सक्षम है। एक राष्ट्र के आस पास का बदलता वातावरण उसे बदलने को मजबूर करता है। जो शरीर /राष्ट्र /प्रोटोकॉल बदलते माहोल में सफलता से एडाप्ट होते है, वही समाज में आगे भड़ते है।
भरोसे का विस्तार कैसे करें?
इतिहास गवाह है की इंसान की सफलता सहयोग, व्यपार और एक दूसरे के ऊपर भरोसा भड़ाने वाली गतिविडीहों पर निर्भर है। अगर एक एलियन हमसे पूछे," आप सब यहाँ क्या कर रहे है?", तो उसका जवाब है की हम सहयोग करने की कोशिश कर रहे है। पर शायद हमे पहले सफलता से सहयोग करना होगा ये जानने के लिए की हमारा मक्सत क्या है? हमारा मकसत है एक ऐसा राष्ट्र /प्रोटोकॉल बनाना जो हमे एक दूसरे पर भरोसा करना आसान बनाये ताकि हम आपने संगठित मक्सत की और जा सके!
सभी प्रोटोकॉल /राष्ट्र इस्नानो को सहयोग करने में सफल नहीं होते, वे वक़्त के साथ बदलते है और इतहास इसका गवाह है। हमारे आपसी भरोसे का विस्तार करने की शक्ति जीस राष्ट्र / प्रोटोकॉल में सबसे जयादा होगी, वो राष्ट्र या प्रोटोकॉल बदलते वातावरण में सफल हो पायेगा।
दूनबार का नंबर
दूनबार का नंबर कहता है ही हर प्रजाति की सहयोग करने की एक अधिकतम सीमा होती है जिसके ऊपर वो सामाजिक रिश्ते नहीं निभा सकते।
इंसानों के लिए ये आकड़ा १५० लोगों तक सिमित है। दूनबार का नंबर आखिरकार भरोसे पर आधारित है। एक समूह के लोग कितने लोगों का ज्ञान आपने दिमाग में रख सकते है, जिससे सबको पता चले कौन भरोसे लायक है? जब रिश्तों की बात आती है थो 'भरोसा' चिकनी की तरह काम करती है। भरोसे पर परिवार, दोस्ती और व्यपार सब कायम है। व्यपार और आर्थिक गतिविधि भड़ती है जब लोग एक दूसरे पर ज्यादा भरोसा कर सके।
इतिहास गवाह है की जब कोई प्रणाली इंसानों को एक दूसरे पर ज़्यादा भरोसा दिलाने में सफल होती है, थो समाज उसे अप्पन लेता है।दूनबार का नंबर एक मजबूत आधार है जो एवोलुशन ने चुना है और हर राष्ट्र जो इंसानों ने बनाय वो उस आधार पर बनाई गयी इमारतें है।
अर्थव्यवस्था और प्रोटोकॉल
राष्ट्र वे प्रोटोकॉल है जो नियम बनाते है जिससे रभी व्यक्ति एक साथ काम कर सके। समाज मे सफलता से सहयोग करने की शमता प्रोटोकॉल के नियमों से बनती है। अगर सभी नियमों का पालन करते है तो सहयोग करना आसान होता है।
इंटरनेट प्रोटोकॉल या IP (आईपी) एक कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल है जिससे कंप्यूटर सहयोग करते है।पूरा इंटरनेट इस आधार पर बना है की की सरै कंप्यूटर इस IP (आईपी) के नियम पाले। क्यों की सभी वही IP (आईपी) इस्तेमाल कर रही है, सभी लोग एकही इंटरनेट पर है। इस वहजहा से इंटरनेट पूरी दुनिया के लिए एक एक वरदान रहा है, कम्युनिकेशन , व्यपार , संस्कृति निर्माण करने और आपसी रिश्ते भड़ाने के लिए। एक प्रोटोकॉल का मकसत ही है इंसानों को प्रगति करने में मदद करना और सब को अपने मकसत तक पोहोंचना।
धर्म, राष्ट्र , इंटरनेट ये सब प्रोटोकॉल्स है जो हमे एक दूसरे से सहयोग करने में मदद करते है। इसमें से हर एक प्रणाली अप्पने नियम बनाती है जो अगर सब पल्ले तो सबका भला होता है।
न्यूट्रल प्रोटोकॉल और अर्थव्यस्था
इतिहास गव्हा है की जब कोई प्रोटोकॉल निष्पक्ष नहीं होता, तो कोई गिने चुने लोग उसपर कब्ज़ा कर लेते है और इसी वहज से हमे धार्मिक युद्ध और कम्युनिस्ट रूस जैसे उदहारण ढकने मिलते है। सबसे बड़ियाँ प्रोटोकॉल वो है जिसपर कोई कब्ज़ा न कर सके और सब लोगों को उससे लाभ हो। निष्पक्ष प्रोटोकॉल हम अप्पने मकसत तक पौंछने के लिए मदद करते है।इंटरनेट इसका अच्छा उधारणा है। आपको इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए मुस्लमान या कम्युनिस्ट नहीं होना पड़ता ।सभी धर्म और विचार के व्यक्ति इंटरनेट के IP प्रोटोकॉल के ऊपर सहयोग कर सकते है। इसी लिए चर्च और राष्ट्र का अलग होना जरुरी था, ताकि किसीके धार्मिक विचार उन्हें अर्थव्यस्ता में शामिल होने से न रोके।
किसी भी प्रोटोकॉल से बहार निकलने की अनुमति सबको होनी चाहिये। एक प्रोटोकॉल एक ऐसी रचना होनी चाहिये जो सबको अप्पने मकसत तक पहोंचने में मदद करे पर किसी को दूसरे के विचार या जीवनशनकला के हिसाब से चलने मे मजबूर ना करे।
एक अच्छा प्रोटोकॉल सबको आपने मकसत तक पहुंचने मे मदद करता है बीना यह बताये की मकसत क्या होना चाहिये।अच्छे प्रोटोकॉल अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देते है।एक मजबूत अर्थव्यवस्था होने से एक प्रोटोकॉल हर किसी को अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है, बिना यह बताये की मक्सत क्या होना चाहिये। 'अर्थव्यवस्था' एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग लोग अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए करते हैं, और एक न्यूट्रल प्रोटोकॉल एक न्यूट्रल अर्थव्यवस्था की स्थापना करता है।
प्रोटोकॉल का इतिहास
जैसा कि पूरे इतिहास में प्रोटोकॉल विकसित हुए हैं, प्रत्येक नए प्रोटोकॉल ने अपने पुराने डिजाइन में सुधार किया है। समय के साथ, जिन प्रोटोकॉल ने स्वतंत्रता पर सीमाएं लगाई हैं, उन्हें नए प्रोटोकॉल द्वारा बदल दिया गया है।मैं पूरे इतिहास में मानव संगठनात्मक योजनाओं (प्रोटोकॉल) के तीन मुख्य युगों पर ध्यान दे कर रहा हूं, हालांकि ऐसे बहुत से अन्य कदम हैं जिन पर चर्चा नहीं की जाएगी।
धर्म
व्यवहारों और प्रथाओं की एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रणाली।
धर्म प्रोटोकॉल हमें बताता है कि दूसरों के साथ सहयोग करने के लिए कैसे कार्य करना है। धर्म का लक्ष्य बड़े पैमाने पर सामाजिक एकता बनाना है। "धार्मिकता" नैतिक रूप से सही होने का गुण है; उस भरोसे को मापने का एक तरीका जिसे कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति में सुरक्षित रूप से रख सकता है। अगर कोई धार्मिक है, तो उस पर भरोसा किया जा सकता है। यह क्रेडिट स्कोरिंग का एक पुराना रूप है।
धर्म ने व्यक्तियों के बीच विश्वास बढ़ाया, तब भी जब व्यक्ति दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहते थे और एक दूसरे को पारस्परिक स्तर पर नहीं जानते थे। धर्म ने व्यक्तियों के बीच विश्वास बढ़ाया, तब भी जब व्यक्ति दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहते थे और एक दूसरे को पारस्परिक स्तर पर नहीं जानते थे। सार्वजनिक रूप से एक ही धार्मिक बैनर धारण करके, दो अजनबी एक दूसरे को सामाजिक संपर्क के इतिहास के बिना जानने में सक्षम थे।
एक धर्म के लिए प्रोटोकॉल आमतौर पर एक पवित्र पुस्तक में लिखा और औपचारिक रूप से लिखा जाता है। ये ग्रंथ, प्रोटोकॉल के दस्तावेज हैं, जो तय करते हैं कि प्रोटोकॉल और प्रोटोकॉल का पालन करने वाले लोगों को एक दूसरे के अनुसार कैसे काम और व्यवहार करना चाहिए। विवादों का समाधान, भगवान् के अंतिम वचन से होता था जो इन् पवित्र पुस्तकों में पाया जाता था।
लागत और कमियां
धर्म के बारे में सबसे बुरी बात यह थी कि कोई भी दो लोग पवित्र ग्रंथों को पढ़ने के बाद अलग-अलग निष्कर्ष निकाल सकते थे और पवित्र पाठ की विभिन्न व्याख्याओं के आधार पर अलग-अलग कार्यों का पालन कर सकते थे। वास्तविकता मे इन दो अलग-अलग संस्करणों के परिणामस्वरूप प्रोटोकॉल विचलन हुआ। इसे प्रोटोकॉल फोर्क कहते है। इसकी वहज से एक केंद्रीय विश्वास प्रणाली टूट जाती थी और कई अलग-अलग जनजातियों। बन जाती थी जिससे बड़ी संख्या पर सहयोग करना मुश्किल हो गया।
मचूर(mature) होने पर, संगठित धर्म बिखरने लगता है। प्रत्येक धर्म की एक 'जीत-स्थिति' या 'end-game' होता है, जिसका अर्थ है कि केवल एक ही धर्म 'जीतता है' और बाकी सभी हार जाते हैं। धर्म स्पष्टता से यह परिभाषित करता है कि कौन प्रणाली के अंदर हो सकता है और बाकी सभी जो उन नियमों का पालन नहीं करते हैं वे 'दुश्मन' हैं। आंतरिक एकता स्थापित करने के लिए, धर्म अपने अधिकतम पैमाने पर सीमा निर्धारित करते हैं।
धर्म के कुछ बेकार नियम हैं जैसे छोटी बच्चियों की हत्या, गंगा जैसी नदियों को प्रदूषित करना और समलैंगिकता जैसे व्यवहार को प्रतिबंधित करना। इससे समय और साधन दोनों का नुकसान होता है जोकि किसी अनन्य काम मे लगाया जा सकता है। धर्म लोगों के कुछ समूहों पर अत्याचार करता है, पर उससे पूरी प्रणाली को कोई फ़ायदा नहीं होता। समूह के सदस्यों पर अत्याचार करने वाले नुस्खे पूरे सिस्टम की स्थिरता के लिए हानिकारक है। इससे सिस्टम को बनाए रखने वाले सदस्यों के प्रोत्साहन को हानि पौंछती है। लोग एक ऐसी सिस्टम के साथ गठबंधन क्यों करेंगे जो उनकी स्वतंत्रता पर अत्याचार करती है? जब कोई बेहतर सिस्टम आती है थो यह लोग उस सिस्टम में शालिम होने को प्रेरित होंगे।
जब एक प्रोटोकॉल की शक्ति और प्रभाव में बढ़ता है, तो उस पर नियंत्रण हासिल करने का प्रोत्साहन उसी के अनुरूप बढ़ता है।जबकि किसी धर्म के प्रोटोकॉल ने लोगों को एक साथ जोडा, लोगों को नियंत्रित करने और प्रभाव डालने की इसकी क्षमता बहुत मोहक हो गई। अंततःमे इन प्रणालियों का नेतृत्व उन लोगों ने किया जो स्वयं प्रोटोकॉल के नियमों का पालन नहीं करते थे, बल्कि इसके बजाय उस प्रोटोकॉल के शक्ति और प्रभाव में रुचि रखते थे। धार्मिक प्रोटोकॉल पर नेतृत्व अंततःमे भ्रष्टाचार और विनाश का कारण बना।
अंत में, धार्मिक प्रोटोकॉल की गैर-तटस्थता(non-neutrality) ने उनके दायरे को सीमित कर दिया। प्रोटोकॉल का पालन करने में घर्षण, और कब्जा-प्रतिरोध को बनाए रखने में असमर्थता ने अंततःमे नए राष्ट्र प्रोटोकॉल की स्थापना के लिए पर्याप्त रूप से प्रोत्सान दिया।
राष्ट्र
राष्ट्र के प्रोटोकॉल ने संगठित धर्म की तुलना में कम लागत के साथ लोगों के बीच विश्वास और संगठन को बढ़ाने का एक मजबूत तरीका पेश किया।किसी राष्ट्र का 'संविधान' उसके प्रणाली को कैसे संचालित करना चाहिए, इसके लिए एक 'अगर-यह-तब-वह' का कोड आधार है। धर्म और राष्ट्र के अलग होने का मतलब यह था कि किसी भी व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं ने उन्हें अर्थव्यवस्था में भाग लेने के लिए प्रतिबंधित नहीं किया और इस वहज से एक-दूसरे के साथ सहयोग करने में मदद की।
एक राष्ट्र का मुख्य आविष्कार यह था की एक स्थायी, अपरिवर्तनीय, नियमों और शासकों के समूह को हटाकर प्रोटोकॉल को बदलने के लिए एक प्रोटोकॉल बनाया।
कभी कभी लोग गलती करते है, पर उस गलती को सुधरने का प्रयास राष्ट्र का प्रोटोकॉलकरता है। धर्म में, भगवान का शब्द अंतिम है। इसलिए धर्म के प्रोटोकॉल को बदलते समाज के साथ खुद को अपडेट करने में असमर्थ है। एक 'प्रोटोकॉल बदलने के लिए प्रोटोकॉल' वह विशेषता है जिसने राष्ट्र को, धर्म के मुकाबले कहीं आगे बढ़ाने में सक्षम बनाया। समस्याओं को आवाज देने और उनके हल पर सहमति बनाने की अनुमति देकर, 'प्रोटोकॉल को बदलने के लिए प्रोटोकॉल' एक 'सॉफ़्टवेयर अपडेट' करने जैसा होगया। इसने प्रोटोकॉल में सुधार की अनुमति दी और सिस्टम की लागत कम कर दी।
एक राष्ट्र एक विलक्षण चीज नहीं है, बल्कि एक दूसरे से जुड़े, स्वतंत्र भागों का एक जाल है, जिसमे हर एक भाग का एक इनपुट और एक आउटपुट है। यह प्रणाली दो भागों में बाटी है: राष्ट्र और इसकी अर्थव्यवस्था।यह प्रणाली दो भागों में बटी है: राष्ट्र और इसकी अर्थव्यवस्था। एक राष्ट्र का 'प्रोटोकॉल' उसके नियम और कानून है, जिसे एक दस्तावेज में लिखा जाता है। अर्थव्यवस्था वह चीज है जो उस प्रणाली का पोषण करती है जो इसे नियंत्रित करती है, साथ ही वह चीज जो व्यवस्था के शासन को उद्देश्य देती है। अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना एक राष्ट्र का संपूर्ण बिंदु है।
भारत एक राष्ट्र प्रोटोकॉल का एक मॉडल है। यह अपने पूरे क्षेत्राधिकार में विश्वास और संचार को अधिकतम करने के लिए एक प्रणाली है। भारत की राष्ट्रीय सरकार 'प्रोटोकॉल का प्रोटोकॉल' है।२९ राज्यों में से प्रत्येक एक "सब-प्रोटोकॉल" जैसा है, जिसे इसके रहवासों के लिए अधिक बारीकी और उपयोगिता से डिज़ाइन किया गया है। राज्यों के अंदर जिले हैं जो राज्य के 'सब-प्रोटोकॉल' हैं। परिमाण के तीन घटक भारत के संपूर्ण निर्मित प्रोटोकॉल को परिभाषित करते हैं, और भारत के किसी भी हिस्से से विश्वास और व्यापार के विस्तार को सक्षम करते हैं।
यह 'प्रोटोकॉल-का -प्रोटोकॉल-का -प्रोटोकॉल' सिस्टम है जो भारत के पूरे देश में खुली सीमाओं और मुक्त व्यापार की अनुमति देता है। प्रोटोकॉल 'स्टैंडर्ड्स' बनाने के लिए काम आता हैं, उदाहरण के लिए, भारत का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस बात की सीमा निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति कितना प्रदूषण कर सकता है। स्टैंडर्ड्स और प्रोटोकॉलकरण, विश्वास को बढ़ाकर कार्यक्षमता को बढ़ावा देते हैं और इससे राष्ट्र को अपने डोमेन में विश्वास और व्यपार को बढ़ाने में सक्षम बनाया है।
यूएसए और यूएसएसआर
यूएसए और यूएसएसआर के बीच शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसपर यह तै हुवा की कौनसा प्रोटोकॉल बेहतर अर्थव्यवस्था बना सकता है? अमेरिकी प्रोटोकॉल ने मजबूर सेवा के मुकाबले व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप एक अधिक मजबूत और प्रभावी अर्थव्यवस्था हुई। जब इंसानोको अपने उपकरणों पर छोड़ दिया जाता है, तो उन्हें खुद्द पता चलता है कि वे राष्ट्रीय प्रणाली में सबसे अच्छी तरह कैसे फिट होते हैं। यूएसएसआर की केंद्रीय योजना प्रणाली ने स्वतंत्रता की इच्छा को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया। बजाय। इसने उन्हों नई इसपर ध्यान दिया कि यूएसएसआर की अर्थव्यवस्था कैसी होनी चाहिए, और इसके अंदर के नागरिकों को कैसे/कहां जाना चाहिए।इससे यह सबक सीखा गया की, 'लोगों को जब अधिकतम स्वतंत्रता दी जाती है तो वे खुद को एक कुशल, परस्पर जुड़ी अर्थव्यवस्था में स्वतः व्यवस्थित कर लेते हैं’। बाजार के मुक्त हाथ ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को समृद्धि दिलाई और यूएसए प्रोटोकॉल को यूएसएसआर पर मात देने के लिए आवश्यक संसाधन दिए।
महत्वपूर्ण रूप से, यह इन प्रणालियों के कामकाज पर विचार करने के लिए एक और डेटा बिंदु जोड़ता है। यूएसएसआर प्रोटोकॉल की केंद्रीकृत और पपौराणिक संरचना धर्म द्वारा निर्धारित अत्यधिक प्रतिबंधात्मक प्रोटोकॉल के समान थी। धर्म और यूएसएसआर, दोनों ने इंसानो की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया, और विश्वास और संगठन को मापने के लिए इन प्रणालियों की क्षमता सिमित थी। व्यक्तिगत प्रतिबंधों से उत्पन्न हुयी अक्षमता दोनों प्रणालियों को तुच्छ बनती है । जाहिर है, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वतंत्रता पर जोर देने वाली प्रणालियां बाकि प्रणालियों के मुकाबले में बेहतर प्रदर्शन करती हैं।
लागत और कमियां
संविधान भारत के मान्यताओं की घोषणा करता है: जैसे कि सभी नागरिक समान हैं, लेकिन यह वास्तव में इसका समर्थन नहीं करता है और इसे लागू नहीं करता है; यह सिर्फ एक सुझाव है।
बड़े पैमाने पर, राष्ट्र प्रोटोकॉल के मंत्री और उनके नागरिकों के सामूहिक लक्ष्यों में अन्तरनिर्माण होता है । एक राष्ट्र के मंत्रियों चाहते है की वे सत्ता में बने रहे ,और इसके लिए अधिक से अधिक संसाधनों और पैसों को इस काम पर लगाया जाता है। फिर से इलेक्शन जितने के लिए, एक मंत्री को धन की आवश्यकता होती है, और वे आमिर लोगों पर एहसान करके उन फंडों तक आसानी से पहुंच सकते हैं। एक राष्ट्र के शासन की औपचारिकता स्पष्ट रूप से बताती है कि व्यवस्था पर प्रभाव व्यक्त करने के लिए शक्ति और प्रयास को कहां लगाने की आवश्यकता है। स्पष्ट, औपचारिक नियमों के परिणामस्वरूप, शासन को प्रभावित करने में रुचि रखने वाली पार्टियों के लिए एक रोडमैप और चेकलिस्ट बनाई जाती है। निश्चित रूप से, शासन को प्रभावित करने में सभी की दिलचस्पी है; यह लोकतंत्र का मुख्य बिंदु है। हालांकि, जब पैसे को अपना प्रभाव व्यक्त करने की अनुमति दी जाती है, तो प्रोटोकॉल अपनी विश्वसनीय तटस्थता(credible neutrality) खो देता है, और लोग अपनी इच्छा व्यक्त करने की क्षमता खो देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि अमीरों को खुद टैक्स नहीं देना पड़ता, जबकि बाकी सभी को राष्ट्र की लगत का भुगतना करना पड़ता है।
समय के साथ, किसी भी राष्ट्र के नागरिक खुद से पूछ सकते हैं, "क्या मेरे देश के अंदर रहने की लागत मेरे देश द्वारा मुझे दिए जा रहे लाभों के बराबर है?"।
यदि दो लोगों को एक ही समस्या का सामना करना पड़ता है, लेकिन एक के पास आगे भड़ने का रास्ता स्पष्ट है और दूसरे को ईंट की दीवार दिखाई देती है, तो पहला व्यक्ति को उत्साह और आशा का अनुभव हो सकता है जबकि दूसरे व्यक्ति को क्रोध और निराशा का अनुभव हो सकता है। ग़ुस्सा और निराशा वे भावनाएँ हैं जो तब उत्पन्न होती हैं जब किसी व्यक्ति को अपने लक्ष्यों की ओर प्रगति करने से रोक दिया जाता है। जब भारत के नागरिक अमीर और शक्तिशाली लोगों को कोविड के दौरान भी जीवन के सभी लाभों का आनंद लेते हुए देखते हैं, जबकि आम आदमी पीड़ित हो राहा है और कोई मंत्री उन्हें गंभीरता से नहीं लेरहा, तो गुस्सा और विरोध होता है।
अवसर की कमी और व्यवस्था में असमानता लोगों को अपनी वर्तमान राष्ट्र प्रणाली को चोदे देने के लिए प्रोत्साहित करती है। जिस तरह तीर्थयात्रियों ने सम्राट के अत्याचार से बचने के लिए अटलांटिक को पार किया, उसी तरह लोग आज भौतिक राष्ट्र और डिजिटल राष्ट्र के बीच की खाई को पार कर रहे हैं। डिजिटल राष्ट्र एक ईंट की दीवार के बजाय एक 'स्पष्ट मार्ग' हैं, और लोगों को कम से कम कुछ हद तक अपनी भौतिक राष्ट्र प्रणाली से 'ऑप्ट-आउट'/बहार निकलने की क्षमता प्रदान करती हैं।
लोग जितना अधिक अनसुना महसूस करते हैं, प्रगति की कमी से वे उतने ही निराश हो जाते हैं उन्हे मानव सहयोग के अगले प्रतिमान में जाने के लिए उतना ही अधिक प्रोत्साहन मिलता है।
नेटवर्क राष्ट्र
बिटकॉइन और एथेरियम नेटवर्क राष्ट्र हैं। वे मानव सहयोग के अगले पुनरावृत्ति हैं। महत्वपूर्ण रूप से, वे इंटरनेट पर रहते हैं। टैंक, पैदल सेना, लड़ाकू जेट और परमाणु बम जो भौतिक राष्ट्रों को शक्ति देते हैं, वे हतियार इन डिजिटल नेटवर्क राष्ट्रों की आजीविका पर कोई प्रभाव नहीं डालते हैं। क्योंकि वे इंटरनेट पर रहते हैं, उनके पास पूरी दुनिया की आबादी तक पहुंचने की क्षमता है और ऐसा करने के लिए उन्हे केंद्रीकृत सरकार या सेना की किसी भी लागत की आवश्यकता नहीं है। इन डिजिटल नेटवर्क राष्ट्रों को व्यपार और अर्थव्यवस्था के लिए आधार के रूप में उपयोग करते हुए, मनुष्य 'समन्वय प्राप्त करने' के अपने प्रयास में एक महत्वपूर्ण छलांग लगाने में सक्षम हैं।
बिटकॉइन और एथेरियम के कई घटक राष्ट्रों के पिछले रूप सामान है। प्रत्येक राष्ट्र का अपना मूल पैसा होता है।माइनर/स्टेकर एक डिजिटल राष्ट्र के लिए (केवल-रक्षा) सेना हैं और डिजिटल राष्ट्र के अंदर आर्थिक गतिविधि पर टैक्स लगाकर आपने संचालन की लागत का भुगतान किया जाता है। डिजिटल नेटवर्क राष्ट्र का प्रोटोकॉल नियमों को एक एक सहभाजी बही पर परिभाषित करता है। प्रोटोकॉल, खुद्द अपनी पुलिस बल के रूप में कार्य करता है, जो राष्ट्र के नियमों का पालन करता है।ब्लॉकचेन डेटाबेस डिजिटल नेटवर्क राष्ट्र की सीमाओं को परिभाषित करता है। डेटा और जानकारी या तो डेटाबेस में है, या यह नहीं है। 'ऑन-चेन' या 'ऑफ-चेन'। मूल व्यवसाय मूल मुद्रा के बदले उत्पादों या सेवाओं की पेशकश करते हैं। भौतिक-राष्ट्रों में देशभक्त हैं जो सरकार में सेवा करते हैं। डिजिटल नेटवर्क राष्ट्रों में 'मक्सिमालिस्ट'(maxis) हैं जो अपने नेटवर्क राष्ट्र में शामिल होने के लिए दूसरों को प्रचारित करते है और लुभाने के लिए प्रेरित करते हैं।
बड़े पैमाने पर मानव संगठनों में अगला पड़ाव है डिजिटल नेटवर्क राष्ट्र। डिजिटल नेटवर्क राष्ट्र ने अपने आर्किटेक्चर में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं, जबकि पुरानी प्रणालियों की सबसे बड़ी कमियों को भी निकाल दिया है। यह मुमकिन हुवा है नई तकनीक (क्रिप्टोग्राफी) को लागू करके, लेकिन महत्वतपूर्ण रूप से एक प्रोटोकॉल की जिम्मेदारी को दायरे मे रखके।
इतिहास में प्रोटोकॉल उन चीजों को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं जिन्हें इसके सदस्यों द्वारा 'यह बहुत अधिक है' समझा जाता है। इंफ्रास्ट्रक्चर , स्वास्थ्य, रक्षा, फाइनांस और रेगूलेशन ऐसी कुछ चीजें हैं जिन्हें भौतिक राष्ट्र नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। एक राष्ट्र अपने नागरिकों के जीवन के हर एक पहलू को अपने नियंत्रण में नहीं लेता क्यूंकि उसे लोगों से विरोध का सामना करना पड़ता है। यदि राष्ट्र के प्रोटोकॉल में खुद को प्रतिबंधित करने की क्षमता होती तो ये लोग अपनी शक्ति को कुछ अधिक उत्पादक काम में निवेश कर सकते हैं।
बिटकॉइन और एथेरियम राष्ट्रों को किसी के लिंग, जाति, धर्म, आयु, भाषा, नागरिकता या व्यक्तिगत राय से कोई लेना-देना नहीं है। डिजिटल राष्ट्र विशेष रूप से मूल्य और मूल्य प्रबंधन से संबंधित हैं। नतीजतन, एथेरियम और बिटकॉइन सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करते हैं।
पहली बार, मनुष्यों ने एक ऐसा राष्ट्र बनाया है जिसे 'आउट-ग्रुप/दुश्मन' के अस्तित्व की आवश्यकता नहीं है। बिटकॉइन और एथेरियम में एक राष्ट्र की संरचना, परिभाषित सीमाओं और परिभाषित दुश्मनों से लेकर, इंटरनेट जैसी किसी चीज तक होती है। इन् डिजिटल नेटवर्क राष्ट्रों मे शामिल होने के लिए कोई आधार कार्ड नहीं लगता और किसी की अनुमति नहीं लेनी पड़ती। बिटकॉइन और एथेरियम पहले डिजिटल नेटवर्क राष्ट्र हैं जो पूरे विश्व को अपने नागरिकों के रूप में होस्ट कर सकते हैं।
ऐतिहासिक राष्ट्रों के प्रभाव को कम करना
प्रत्येक भौतिक राष्ट्र की अपनी मूल मुद्रा प्रणाली होती है। यह एक उपकरण है जिसका मुख्य उद्देश्य नागरिकों पर शक्ति और नियंत्रण को बनाए रखता है। धन और मूल्य को नियंत्रित करने की क्षमता किसी राष्ट्र की वैधता और शक्ति को बनाए रखने के लिए टूलबेल्ट में सबसे बड़ा उपकरण है। इस शक्ति को बिटकॉइन और एथेरियम जैसे डिजिटल नेटवर्क देशों को दे देना भौतिक राष्ट्रों के लिए एक महत्वपूर्ण झटका होगा।
यदि किसी भौतिक राष्ट्र के लोग बिटकॉइन या एथेरियम जैसे डिजिटल राष्ट्रों के अंदर अपने संपत्ति को संग्रहीत और प्रबंधित करने का निर्णय लेते हैं, तो पारंपरिक राष्ट्रों के पास अब यह जिम्मेदारी नहीं होगी। यदि दुनिया के नागरिक बिटकॉइन या एथेरियम को अपने धन और फाइनांस मंच के रूप में चुनते हैं, तो भौतिक राष्ट्र इन प्रणालियों पर अपना एकाधिकार खो देते हैं। नतीजतन, भौतिक राष्ट्र खुद को पैसे देने की क्षमता खो देता है, क्योंकि जिस मुद्रा प्रणाली को वे नियंत्रित करते हैं उसका उपयोग लोगों द्वारा नहीं किया जायेगा।
पैसा एक सार्वजनिक वस्तु है, राज्य का उपकरण नहीं। यह सबसे महत्वपूर्ण सबक है जो डिजिटल नेटवर्क राष्ट्र हमें सिखाते है। डिजिटल देशों के अनुसार, लोगों का कोई भी समूह पैसा छापने में सक्षम नहीं होना चाहिए। यह विचार स्पष्ट रूप से बिटकॉइन के पहले ब्लॉक में कहा गया है: "Chancellor on Brink of Second Bailout for Banks"
इथेरियम के समान मूल्य हैं लेकिन अधिक विस्तृत तरीके से। बिटकॉइन "पैसे और राष्ट्र को अलग करने" का एक ठोस ट्रिगर है, एथेरियम "अर्थव्यवस्था और राष्ट्र को अलग करने" की पुकार है। जिस तरह राष्ट्र ने फैसला किया कि धर्म को शासन में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, डिजिटल नेटवर्क ने घोषणा की कि राष्ट्रों को पैसे या अर्थव्यवस्था को नियंत्रित नहीं करना चाहिए। डिजिटल राष्ट्रों के अनुसार, राष्ट्र को मुद्रा और बाजारों द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए, न कि राष्ट्र को धन और बाजारों को पर नियंत्रित देना चाहिए। बिटकॉइन और एथेरियम को अपनाना मतलब यह कहना है कि राष्ट्र को अर्थशास्त्र के उन्हीं नियमों का पालन करना चाहिये जैसे बाकि सब करते है।
निष्कर्ष
भाग एक मानव संगठन योजनाओं के इतिहास को देखता है ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि डिजिटल नेटवर्क क्रियाएं वैश्विक मानव सहयोग और व्यापार का अगला चरण हैं। भाग दो में हम देखेंगे कि कैसे डिजिटल नेटवर्क राष्ट्रों के अपने उप डोमेन होते हैं और वे एक दूसरे के साथ कैसे इंटरैक्ट करते हैं।